तान्त्रिक लोग स्वयं कठोर साधना करते हैं जिसके द्वारा वे ऐसी अपूर्व शक्ति अपने अन्दर जागृत कर लेते हैं जिसके द्वारा दूसरों का भला बुरा भी आसानी से हो सकता है। उनकी अनुष्ठान, पुरश्चरण, जप, मुद्रा आदि क्रियाओं के द्वारा एक प्रकार के सूक्ष्म कम्पन उत्पन्न होते हैं चूंकि यह निश्चित उद्देश्य के साथ किसी खास काम के लिये उत्पन्न किये जाते है, इसलिए उनका प्रवाह एक ही दिशा में होता है और जैसे आतिशी शीशे द्वारा एकत्र की हुई सूर्य की किरणें एक स्थान पर केन्द्रित होकर अग्नि समान बन जाती हैं वहाँ बात इन कम्पनों की होती है। मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण, स्तम्भन आदि सब कुछ तन्त्र विद्या द्वारा होता रहा है और हो सकता है। फिर भी अविश्वासी लोग अपनी हठ पर दृढ़ रह सकते हैं। पृथ्वी गोल और भ्रमणशील है। पर सांप के फन पर तवे की तरह रखी हुई है ये समझने वाले अपनी राय रखने में स्वतन्त्र हैं।
प्राचीन काल में गोरखनाथ, मछन्द्रनाथ, नागार्जुन आदि अनेक तान्त्रिक और सिद्ध हुये हैं। एक जमाना था कि इस विद्या का सर्वत्र बोलबाला था और लोग इसके द्वारा पूरा- पूरा लाभ उठाते थे। किन्तु समय ने पलटा खाया, जो चढ़ता है वह गिरता भी है। तन्त्र विद्या कुपात्रों के हाथ में चली गई और उसका उपयोग लालची, स्वार्थ एवं इन्द्रिय लोलुपता के लिये होने लगा। ईश्वर ने ऐसा विधान बना रखा है कि अन्यायी और पर पीड़ा कालान्तर में स्वयंमेव नष्ट हो जाते हैं। तदनुसार जब तान्त्रिकों ने रावण जैसा रवैया धारण कर लिया तो जनता में उसके विरुद्ध आतंक और भय छा गया। लोग उनके अत्याचारों से पीड़ित होकर त्राहि- त्राहि करने लगे। ईश्वर को यह मंजूर न था, उसने तान्त्रिकों को विनाश के मुख में धकेल दिया। तन्त्र विद्या के महाशास्त्र हम्मामों को गरम करने के काम आये।
तब भी जो टूटी फूटी विद्या बच रही थी वह गुरु परम्परा के अनुसार अपने उल्टे सीधे रूप में अपनी उपयोगिता के कारण प्रचार पाती रही। अब भी कोई गली, मुहल्ला, गाँव, शहर ऐसा नहीं है जहाँ काना, कुबड़ा तान्त्रिक न रहता हो। झाड़, फूँक, गण्डा, ताबीज उसी विद्या के लँगड़े रूप हैं। इनसे भी लाभ होता है। यदि लाभ न होता तो बिलकुल झूठे अन्ध विश्वास को इतने दिनों तक कोई जीवित नहीं रख सकता था। वह कब का मर गया होता।
आज तन्त्र विद्या बड़े विकृत रूप में इस प्रकार जनता के सामने उपस्थित होता है कि उसका रूप ढोंग की ठगी से मिलता जुलता हो जाता है। इसीलिये समझदार लोग उसे दुरदुराते है। कोई भी अच्छी चीज यदि अशिक्षित लोगों तक सीमित रहे, तो उसकी दुर्गति होना अवश्यम्भावी है। तन्त्र विद्या की दुर्गति का भी यही कारण है। यदि इस विषय के विद्वान इस विज्ञान पर प्रकाश डाले तो जन हित का एक बड़ा साधन लोगों को प्राप्त हो सकता है।