उपरोक्त नियम के अनुसार बड़े आदमियों का बालकों पर असर पड़ता हैं। यह असर कभी तो हितकर होता है कभी अहितकर। बालकों को नजर लगना मानवीय विद्युत का अहितकर प्रभाव है। नजर लगने की बात को अन्ध विश्वास कह कर हँसी में उड़ाना मूर्खता है। जब दो शक्तिशाली आदमी आपस की विद्युत से बीमार होकर मरणासन्न स्थिति तक पहुँच जाते हैं, तो बालकों पर असर हो जाने में आश्चर्य की कौन सी बात है? मैस्मरेजम और हिप्रोटेजम विद्या के विशारदों ने यह सिद्ध कर दिया है कि दूसरों पर प्रभाव डालने या प्रभाव ग्रहण करने का मार्ग नेत्र हैं। वे लोग दृष्टिपात करके ही दूसरों को गहरी निन्द्रा में ले जाते हैं और अपने प्रयोग करते हैं। आदमी जब एकाग्र होकर या अधिक आकर्षित होकर किसी की ओर देखता है तो उसकी दृष्टि प्रभावशाली हो जाती है। लालायित होकर देखने पर भी ऐसा ही प्रभाव होता है। कोई बच्चा अधिक हँसता खेलता है, प्यारी- प्यारी बातें करता है तो लोगों का ध्यान उनकी ओर अधिक आकर्षित होता है। यदि उस समय अधिक ध्यान पूर्वक उन्हें खिलावें या प्रशंसा करे तो बच्चों को नजर लग जाती है। मुग्ध होकर अधिक ध्यानपूर्वक उनकी ओर दृष्टिपात किया जाय तो भी नजर का असर हो जाता है। कुछ लोगों में स्वभावतः एक खास प्रकार की बेधक दृष्टि हो जाती है, जिससे साधारणतः भी यदि वे किसी बच्चे की ओर देखें तो असर हो जाता है। ऐसे लोग जिनके बाल बच्चे नहीं होते और बच्चों के लिए तरसते रहते हैं, वे जब दूसरों के बच्चों को हसरत भरी निगाह से देखते है तब यह असर अधिक होता है, क्योंकि लालायित होकर देखने से दूसरी चीजों का अपनी तरफ आकर्षण होता है। पति जब परदेशों को जाते हैं और स्त्री लालायित होकर उसकी ओर देखती है तो रास्ते भर उनका चित्त बेचैन बना रहता है। कभी- कभी तो उन्हें वापिस तक लौटना पड़ता है या एक दिन ठहर जाना पड़ता है। इसलिए प्राचीन काल में क्षत्राणियाँ पतियों को युद्ध में भेजते हुए प्रोत्साहन देकर तिलक लगा कर भेजती थी, वे जानती थी कि यदि हम आकर्षण विद्युत इनकी ओर फेकेंगी तो वे पीछे की ओर खिंचे रहेंगे, युद्ध से लौट आवेंगे या असफल रहेंगे। इसी प्रकार बड़े आदमी जब लालायित होकर बच्चों की ओर देखते हैं तो उन बच्चों की शक्ति खिंचती है और वे उसके झटके को बर्दास्त न करके बीमार पड़ जाते हैं। बिना किसी पूर्व रूप के जब अचानक बच्चा बीमार पड़ जाता है तब समझा जाता है कि उसे नजर लग गई।
हमारे यहाँ की स्त्रियों को इसकी जानकारी बहुत पहले से हैं। नजर से बचाने और लग जाने पर उपचार की क्रिया से भी वे परिचित हैं। ताँबे का ताबीज, शेर का नाखून, मूंगा, नीलकण्ठ का पर आदि चीजें गले या हाथ में पहनाई जाती है। यह चीजें बाहरी बिजली के अपने में ग्रहण करके या उसके प्रभाव को रोककर बच्चों पर असर नहीं होने देती। गरम लोहे का टुकड़ा पानी या दूध में बुझाने से भी वह जल या दूध उस असर को दूर करने वाला हो जाता है। कहते हैं कि आकाश की बिजली अक्सर काले साँप, काले आदमी, काले जानवर आदि काली चीजों पर पड़ती है। काले कपड़े जाड़े के दिनों में इसलिए पहने जाते हैं कि गर्मी की बिजली को अधिक इकट्ठी करके अपने अन्दर रख लें और अधिक गरम रहें। इसी नियम के आधार पर नजर से बचाने के लिये काली चीजों का उपयोग होता है। मस्तक पर काला टीका लगाया जाता है। हाथ या गले में काला डोरा बाँधा जाता है। काली बकरी का दूध पिलाया जाता है। काली भस्म चटाई जाती है। जिस प्रकार बड़े- बड़े मकानों के गुम्बजों की चोटी पर एक लोहे की छड़ इसलिए लगाई जाती है कि वह स्वयं बिजली का असर ग्रहण करके पृथ्वी में भेज दे और मकान को नुकसान न पहुँचने दे, उसी प्रकार यह काला टीका, डोरा आदि नजर के असर को अपने में ग्रहण कर लेता है और बच्चे को नुकसान नहीं पहुँचने देता।
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