हृदय। न विचलो अपने पथ से, अभी बहुत बढ़ना होगा।
ऊँची अगम दुसाध्य शिखिर पर, साहस कर चढ़ना होगा।।
बढ़ो बढ़ो, आगे मत ठहरो, इधर उधर मत ललचाओ।
एक ध्येय, पथ एक, एक की ओर, अकेले ही जाओ।
अपना है कर्तव्य कठिन असि की धारा पर चलना है।
दीप शिखा बन कर प्रकाश फैलाना तिल तिल जलना है।।
(ले. श्री लक्ष्मीनारायण गुप्त, कमलेश, मौदका)
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