Friday, October 9, 2015

स्मरण शक्ति और उसका विकास

मनुष्य का मस्तिष्क इतना गूढ़ है कि उसकी थाह पा लेना आसान नहीं। कहते हैं कि जो ‘पिंड में सो ब्रह्माण्ड में’ संसार के अन्दर जो शक्तियाँ भरी हुई हैं वह शरीर के अन्दर भी हैं। यों कहा जा सकता है कि प्रकृति के अजायब घर का छोटा मानचित्र मनुष्य का शरीर है। स्थूल पदार्थों का प्रतिनिधित्व यह पंच भौतिक शरीर है तो विश्व व्यापी सूक्ष्म चेतनाओं की तस्वीर मस्तिष्क है। इस अद्भुत अवयव की वैज्ञानिक खोज शताब्दियों से हो रही हैं। अब तक जितनी जानकारी इसके सम्बन्ध में प्राप्त की जा सकी है। वह बहुत ही कम है। मस्तिष्कीय श्वेत बालुका का क्या कार्य है विज्ञान अभी यह भी नहीं जान पाया है। फिर भी अब तक जो शोध हुई है हम सब लोगों को आश्चर्य में डाल देने के लिए काफी है। इस अद्भुत यन्त्र में पृथ्वी को डावाँडोल कर देने की शक्ति है। एक दो दस आदमियों की आर्थिक एवं सामाजिक दशा बदलने की नहीं समस्त भूमण्डल में उलट पुलट पैदा कर देने की ताकत है। कार्लमार्क्स का मस्तिष्क पैसे की दुनियाँ में एक पहेली बन गया है। यूरोप का रावण, हिटलर विश्व भर में अपने मस्तिष्क का आतंक जमाये हुए है, उसके त्रास के मारे करीब आधी दुनियाँ की नींद हराम हो रही है। जिन महापुरुषों के मस्तिष्कों ने रेल, तार, बिजली आदि आधुनिक यन्त्रों का निर्माण किया है आप लोग उनके नाम भी नहीं जानते होंगे पर आप यह देखते है कि पिछली शताब्दियों की अपेक्षा अब हमारे जीवन की धारा ही बदल गई है। हिन्दू समाज की चिर कालीन धार्मिक प्रथाओं में स्वामी दयानन्द का मस्तिष्क कितनी क्रान्ति कर गया। कमाल पाशा ने टर्की को सिर पर उठा कर पश्चिम से पूरब में पटक दिया। यह कार्य शरीर के नहीं हैं। शरीर का बल नगन्य है। मानसिक बल के सामने उसका अस्तित्व इतना ही समझना चाहिए जितना विशाल वृक्ष में एक पत्ती का।

इस लेख में मस्तिष्क की बनावट और उसकी महान कार्य शक्ति पर विचार करने की हमारी इच्छा नहीं है क्योंकि लेख की परम्परा स्मरण शक्ति के सम्बन्ध में है। इन पंक्तियों को लिखने का अभिप्राय इतना ही है कि मस्तिष्क की स्मरण शक्ति, धारणा शक्ति, कल्पना शक्ति, इच्छा शक्ति आदि के बारे में जितनी शोधें हो चुकी हैं वे पूर्ण नहीं हैं। भौतिक विज्ञानी हैरान है कि इस अद्भुत भण्डागार का पूरा परिचय किस तरह प्राप्त कर पावेंगे। जितना आगे बढ़ते जाते हैं उतनी ही अधिक गहराई का परिचय मिलता जाता है। स्मरण शक्ति के सम्बन्ध में पिछले अंकों में अब तक की शोध का बहुत कुछ आवश्यकीय भाग बताया जा चुका है। उसके आधार पर इस शक्ति के बढ़ाने के नित नये उपाय निर्धारित किये जा रहे हैं और उनका परीक्षण हो रहा हैं। इन परीक्षणों में जो सफल और संतोष जनक सिद्ध हो चुके हैं उन्हें का उल्लेख इन पृष्ठों में करने का मैं प्रयत्न करता रहा हूँ और आगे करूँगा।

पाठक जानते हैं कि हर काम के करने में कुछ चीज खर्च होती है। सृष्टि में जन्म मरण का नियम इसी सिद्धान्त के आधार पर है। गेहूँ पीस डालने पर आटा बतना हैं, तेल जलाने पर दीपक का प्रकाश होता है। कोयले के बल पर रेल, बिजली के बल पर तार और पेट्रोल की ताकत से मोटर जहाज आदि चलते हैं। एक चीज का खर्च दूसरी को उत्पन्न करता है, इस बात को मानने में किसी को कठिनाई न होनी चाहिए। अब विचार करना चाहिए कि मस्तिष्क द्वारा इतने गजब के काम क्या बिना कुछ खर्च किये होते रहते होंगे? स्मरण शक्ति का मूल आधार मस्तिष्क जिस प्रकार शरीर का सर्वोत्तम अंग है, उसी प्रकार उसकी खुराक भी देह का सर्वोत्तम भाग होना चाहिए। मस्तिष्क के मोटर में वीर्य का पेट्रोल जलता है। यह उक्ति आपने अनेक विचारकों के मुँह से सुनी होगी कि ‘अच्छे शरीर में अच्छा मस्तिष्क रहता है।’ इ इस कहावत की सच्चाई इस आधार पर है कि अच्छा शरीर अच्छा और अधिक वीर्य मस्तिष्क की खुराक के लिए दे सकता है। डाक्टर परावैल ने लिखा है कि ‘‘खराब मस्तिष्क वाले, मूढ़ ,, दीर्घसूत्री, भुलक्कड़, विक्षिप्त, क्रोधी तथा अन्य प्रकार के मस्तिष्क सम्बन्धी जितने रोगी मेरे पास आते हैं, उनमें से ९७ प्रतिशत ऐसे होते हैं जिन्हें वीर्य सम्बन्धी विकार पहले हुआ होता है।’’

हस्त मैथुन बहु मैथुन आदि के कारण वीर्य बहुत अधिक मात्रा में खर्च हो जाता है। और उष्णता पाकर वह पतला एवं प्रवाही बन जाता है। स्वप्र दोष, प्रमेह, शीघ्र पतन आदि रोग वीर्य पतले और प्रवाही होने के लक्षण मात्र हैं। ऐसा दीपक जिसका तेल दूसरे छेद में होकर टपक रहा हो क्या अपने प्रकाश को स्थिर रख सकता है? कम मात्रा में और अशुद्ध पेट्रोल पाले वाली मोटर क्या दूसरी की बराबरी कर सकेगी? सब चिकित्सक जानते है कि वीर्य रोगों, शिर में भारीपन, आँखों के आगे चक्कर आना, निद्रा की कमी, नेत्रों में जलन, अनुत्साह, मानसिक थकावट, कानों की सनसनाहट आदि लक्षणों को भी धारण किये रहते हैं। क्योंकि अपनी पूरी खुराक न पाने के कारण दिमाग दिन- दिन कमजोर होता जाता है। यही कमजोरी उपरोक्त लक्षणों के रूप में दिखाई पड़ती है।

अन्य मानसिक साधन जितने उपयोगी हैं उनमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण वीर्य रक्षा का सवाल है। अपने पशुओं को मजबूत रखने के इच्छुकों को चारागाह का प्रबन्ध करना पड़ेगा। जो लोग अपने मस्तिष्क को विकसित देखना चाहते हैं उन्हें अपने वीर्य को स्थित करना पड़ेगा और उसे मानसिक भोजन में खर्च करने में लगाना होगा। जब हम अपने अखण्ड ब्रह्मचारी ऋषि मुनियों की ओर देखते हैं तो पता लगता है कि वीर्य का मस्तिष्क द्वारा उपयोग कर ऊर्ध्वरेत्ता बन कर कितने महान कार्य संपादित किये थे। एक ही व्यक्ति महर्षि व्यास द्वारा अठारह पुराणों का लिखा जाना क्या कम आश्चर्य की बात है। इस पाठ में पाठकों से यह बात बिलकुल स्पष्ट कर देना ही होगा कि अन्य उपाय पौधे के आस पास भराव कराने के और जमीन फोड़ने के समान हैं जबकि ब्रह्मचर्य पालन उसकी जड़ में जल सींचने के तुल्य है।

ब्रह्मवर्चस के साधारण नियम आप सब लोग पढ़ और सुन चुके होंगे। न जानते हो तो ब्रह्मचर्य सम्बन्धी कोई अच्छी पुस्तक पढ़कर या किसी अनुभवी विद्वान से शिक्षा प्राप्त कर लेनी चाहिए। उस विस्तृत विज्ञान का इन पंक्तियों में उल्लेख करने से तो विषयान्तर हो जायेगा और पाठक दूसरे मामले में उलझ जावेंगे। एक ऊर्ध्वरेता महात्मा ने वीर्य रक्षा के सम्बन्ध में अपना एक अनुभूत चुटकुला बताया था जो परीक्षा करने पर बड़ा ही उपयोगी और अल्प प्रयत्न में बहुत लाभ देने वाला सिद्ध हुआ है। उन महात्मा ने कहा था कि जब कभी मेरी कामेन्द्रिय उत्तेजित होती है तब मैं ऐसी भावना करता हूँ कि शिश्न में आया हुआ वीर्य अपने मानसिक बल द्वारा खींचकर मैं मस्तिष्क में ले जाता हूँ और वहाँ उसे धारण कर देता हूँ। दुधारू पशु की दुग्ध धारा को तब तक निकालते रहते हैं जब तक निकलना बन्द न हो जाय, उसी प्रकार शिश्न से मस्तिष्क तक जाने वाली नाड़ियों में बार- बार यह भावना करनी पड़ती है कि मेरा मानसिक बल इसमें भरे हुए वीर्य को दुह दुह कर मस्तिष्क में बार- बार ले जाया जा रहा है और वहाँ स्थापित किया जा रहा है। पूर्ण मनोबल के साथ ऐसी भावना करने से प्रायः पाँच मिनट से कम में ही काम वासना शान्त हो जाती है। जिन लोगों को अनावश्यक और असामयिक कामोत्तेजना होती है और उससे पीड़ित होकर वीर्यपात करने में प्रवृत्त होते है वे महात्मा जी के इस अनुभूत प्रयोग से पूरा लाभ उठा सकेंगे, ऐसा मुझे विश्वास है।

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