Thursday, October 15, 2015

अतृप्त तृष्णा

संसार की उत्तम वस्तुऐं पाने के लिए निरन्तर कामना रहती है। पर इच्छानुसार वस्तु न मिलने पर विवश हो जाता पड़ता है। दुख से हृदय जलता है, द्वेष की चिनगारियाँ उठती हैं, चारों ओर विरह का धुआँ छा जाता है और अन्त में कष्टमय तृष्णा ही हाथ रहती है। आप भी इसका अनुमान लगाते होंगे। अतः इस स्थिति से मुक्त होने की उपाय करे। आइये, आज हम और आप मिलकर इस कामना का सदा के लिये त्याग करे और दुनियाँ की मन लुभाने वाली वस्तुओं के चक्कर में न आकर अपने पथ पर अटल रहें। संसार का कोई भी प्रलोभन हमें विचलित न कर सके। क्या आप ऐसा संकल्प करने के लिए तैयार हैं?
प्रेमियों के विपरीत हो जाने पर वियोग का कितना कष्ट होता है? इसे आप जानते ही होंगे। मिलन पर कितना हर्ष होता है? इसका भी आपको अनुभव होगा। इन दोनों परिस्थितियों में कौन सी परिस्थिति उत्तम है? इसका निर्णय आपका हृदय कर डाले तो अशान्ति दूर हो सकती है।
कोई धनवान होने की लालसा में मतवाले हैं। किसी को मान पाने की लगन है। कोई महलों तथा ऊँची- ऊँची अट्टालिकाओं के निर्माण और उनकी सजावट में व्यस्त हैं। कोई अपने चरित्र- चमत्कार से संसार को आश्चर्य चकित कर देना चाहते हैं। इनके अतिरिक्त और भी बहुत से अपनी- अपनी इच्छानुकूल वातावरण बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं। इन सबसे पूछा जाय कि आपको अपनी इच्छित वस्तु मिल जाने पर क्या फिर किसी बात की आवश्यकता शेष रह जायेगी? तो क्या उत्तर मिलेगा? संतोष और आत्म तृप्ति को प्राप्त किये बिना क्या तृष्णा और कामना की दावानल किसी प्रकार बुझ सकती है?

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