मनुष्य को जो रोग पैदा होते हैं उन रोगों के पैदा करने वाला जगतनियंता नहीं वरन् मनुष्य स्वयं ही है। शुरुआत से शरीर की देखभाल न रखकर फिर ईश्वर का दोष निकालना, यह कहाँ का न्याय ? बहुत से लोग मानते हैं कि हम बीमार नहीं पड़ते, परंतु बीमार न होना कुछ आरोग्यता की निशानी नहीं है। आरोग्यता तो शरीर बलवान, तेजस्वी और स्फूर्ति वाला बना देती है और उसी से प्रदर्शित होता है। संसार में जन्म लेना और दुर्बल रहना यह एक गुनाह रूप है। इस वास्ते गुनहगार न बनना यही सुख की चाबी है।
निरोग पुरुष अपनी छोटी सी झोंपड़ी में रहकर भी सुखी और आनंदित रहता है। तब वे ही सुख आलीशान महलों में रहने वाला व्याधिग्रस्त राजा भोग नहीं सकता।
आज हर बातों में यदि उतरता हुआ प्रदेश देखा जाय तो यह अपना हिन्दुस्तान ही है। और अभी भी जो मौज, सुख, ऐश-आराम में तल्लीन रहोगे तो परिणाम अति भयंकर है ही। कहते हैं ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ इस वास्ते सावधान हो, जरा निद्रा त्याग कर प्रकाश में आओ, कुछ आगे बढ़ने का प्रयास करो, अभी भी शरीर सुदृढ़, मन प्रबल, और पराक्रम से धनवान बनने-समय है। परंतु मन की प्रबलता के सिवाय कोई भी कार्य सफल नहीं हो सकता उसे सबल बना कर कार्य सुलभ करने के लिए योगोपचार (योगाभ्यास) की शरण लो और शरीर को महान बलवान बनाकर मन को प्रबल करो। मन की एकाग्रता शरीर के सुदृढ़ किये बिना नहीं हो सकती।
शीर्षासन के लिए सूचना
प्रथम जमीन पर मुलायम कपड़ा आदि रख कर दोनों हाथों की अंगुलियाँ एक दूसरे में मिलाकर सिर को जमीन पर रखें और धीरे-धीरे पैरों को ऊपर करता जावे। यहाँ तक कि संपूर्ण ऊपर हो जायें। इस समय प्रथम में यदि स्वयं न कर सके तो दूसरे मनुष्य की मदद ले, या दीवाल के साथ में करें सिर के नीचे कपड़ा या कोई नरम वस्तु रखना चाहिए वर्ना हानि होना संभव है। शुरुआत में 12 दिन तक तीन मिनट, बाद को पच्चीस दिन तक छह मिनट, पच्चीस से सौ दिन तक दस मिनट तक होने के पश्चात् अपनी शक्ति के अनुसार तीस से चालीस मिनट तक बढ़ सकते हैं। जिसका शरीर भारी हो तो उसे प्रथम दिन दो मिनट और बाद में प्रतिदिन एक दो मिनट बढ़ाना चाहिए। इससे नुकसान नहीं होकर कार्य में सुगमता होगी।
इससे लाभ
शीर्षासन से दृष्टि बढ़ती है, हाथ की कोहनियों में पोंहचे में, भुजाओं में ताकत आती है। पुरुषों का वीर्य और स्त्रियों का रजस गाढ़ा होता है। स्वप्न दोष मिटता है। सफेद बाल काले होते हैं, अन्न पाचन होता है, भूख अच्छी तरह लगती है, शरीर और चेहरे पर तेज प्रकट होता है। नित्य प्रति हमेशा आधे घंटे से एक घंटे तक शीर्षासन छह महीने करने पर खून, माँस, मज्जा, भेद, हड्डियाँ वगैरह सप्त धातुएं शुद्ध होती हैं। शरीर और मन में आनंद उत्साह, निर्भयता, स्फूर्ती, सुविचार श्रद्धा अपने में उत्पन्न होती है। आयुष्य बढ़ती है। खुजली, फोड़े, गुमड़े, दाह, पाँव के तलुवों की जलन, निद्रा का आना, सिर की गर्मी वगैरह मिटती है।
आँख के चश्मे उतर जायेंगे। यानी आँख तेजस्वी होकर बारीक से बारीक काम भी कर सकते हैं दाँत मजबूत होते हैं।
परन्तु जिसका खून प्रेशर, छाती कमजोर, फेफड़े में दर्द तथा संकुचित पना, गले का दर्द, चेपोरोग, मगज की अस्थिरता अत्यंत विचार मग्न, तथा हाथ पाँव में अशक्ति हो उसे किसी अनुभवी को सलाह लेने के बाद ही यह आसन करना चाहिए स्त्रियां भी कर सकती हैं। परंतु मासिक धर्म वाली और गर्भवती के लिए वर्ज्य है। समय सुबह अच्छा स्नान करने के बाद शीर्षासन करके शीघ्र ही हाथ पाव लंबे करीब कम से कम 5 मिनट जमीन पर सो रहना चाहिए कारण कि पाँव के अंगूठे से लेकर विशुद्ध चक्र तक का खून सिर के तरफ अत्यंत बहने लगता है। वह खून शीर्षासन करने के बाद शीघ्र ही सिर के भाग में से नीचे अति वेग से उतरने पर शरीर में घूजना, सिर का घूमना फेफड़े पर खून का धक्का चक्कर आना, रक्त वाहिनी नाड़ियों में फेर-फार वगैरह हानि होने का संभव है। दस वर्ष से लेकर सौ वर्ष की उम्र वाले अपनी शक्ति अनुसार हरेक स्त्री पुरुष कर सकता है।
शीर्षासन का लाभ दस मिनट होने के बाद ही मिलेगा।
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